सतावर की खेती
- सतावर को शतावरी के नाम से भी जाना जाता है। सतावर एक औषधीय फसल है। इसका प्रयोग कई प्रकार की दवाइयों को बनाने के लिए होता है। बीते कुछ वर्षों में इस पौधे की मांग बढ़ी है और इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है। किसान इसकी खेती से काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। सतावर की फसल जुलाई से लेकर सितंबर तक लगाई जाती है। सतावर की खेती से एक एकड़ में 5 से 6 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं। इसके पौधे को तैयार होने में करीब 1 साल से अधिक का समय लग जाता है। जैसे ही फसल तैयार होती है, वैसे ही किसानों को कई गुना ज्यादा का रिटर्न मिल जाता है। सतावर की खेती इस लिए भी फायदे की खेती है कि इसमें कीट पतंग नहीं लगते। वहीं, कांटेदार पौधे होने की वजह से जानवर भी इसे नहीं खाते हैं। सतावर की खेती उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, राजस्थान में बड़े पैमाने पर होती है।
आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है और इसमें औषधीय पौधों का उपयोग किया जाता है। कोरोना काल के समय देश-दुनिया में औषधीय पौधों की मांग में बहुत अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है और औषधीय पौधों की खेती करने वाले किसानों ने अच्छा लाभ कमाया है। देश की कई नामी कंपनियां के आयुर्वेद उत्पाद विश्वभर में प्रसिद्ध है और सालभर उनकी मांग बनी रहती है।
अश्वगंधा की खेती
यह एक झाड़ीदार पौधा होता है। इसकी जड़ से अश्व जैसी गंध आती है, इसलिए इसे अश्वगंधा कहते हैं। यह अन्य सभी जड़ी-बूटियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसके उपयोग तनाव और चिंता को दूर करने में किया जाता है। इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। किसानों के लिए अश्वगंधा की खेती बहुत लाभकारी है। किसान इसकी खेती से कई गुना अधिक कमाई कर सकते हैं, इसलिए इसे कैश कॉर्प भी कहा जाता है। अश्वगंधा को बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी माना जाता है। अश्वगंधा कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली औषधीय फसल है। अश्वगंधा की खेती कर किसान लागत का तीन गुना लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अन्य फसलों की अपेक्षा प्राकृतिक आपदा का खतरा भी इस पर कम होता है। अश्वगंधा की बोआई के लिए जुलाई से सितंबर का महीना उपयुक्त माना जाता है। वर्तमान समय में पारंपरिक खेती में हो रहे नुकसान को देखते हुए अश्वगंधा की खेती किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
सतावर की खेती
- सतावर को शतावरी के नाम से भी जाना जाता है। सतावर एक औषधीय फसल है। इसका प्रयोग कई प्रकार की दवाइयों को बनाने के लिए होता है। बीते कुछ वर्षों में इस पौधे की मांग बढ़ी है और इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है। किसान इसकी खेती से काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। सतावर की फसल जुलाई से लेकर सितंबर तक लगाई जाती है। सतावर की खेती से एक एकड़ में 5 से 6 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं। इसके पौधे को तैयार होने में करीब 1 साल से अधिक का समय लग जाता है। जैसे ही फसल तैयार होती है, वैसे ही किसानों को कई गुना ज्यादा का रिटर्न मिल जाता है। सतावर की खेती इस लिए भी फायदे की खेती है कि इसमें कीट पतंग नहीं लगते। वहीं, कांटेदार पौधे होने की वजह से जानवर भी इसे नहीं खाते हैं। सतावर की खेती उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, राजस्थान में बड़े पैमाने पर होती है।

