अगर मनुष्य कुछ आवश्यक बातों को जान ले तो वह सदैव स्वस्थ रह सकता है। आजकल बहुत से रोगों का मूल कारण तनाव (Stress) तथा मानसिक तनाव (Tension) ही है, जिससे बचाव में प्रार्थना बड़ी सहायक सिद्ध होती है। प्रार्थना से आत्मविश्वास बढ़ता है, नियमितता आती है, मानसिक शांति मिलती है एवं नसों में ढीलापन (Relaxation) उत्पन्न होता है। अतः तनावजन्य तथा मानसिक रोगों से बचाव व छुटकारा मिल जाता है। रात्रि-विश्राम के समय प्रार्थना का नियम अनिद्रा रोग एवं सपनों से बचाता है।
इसी प्रकार शवासन भी मानसिक तनाव के कारण होने वाले रोगों से बचने के लिए लाभदायक है।
प्राणायाम का नियम फेफड़ों को शक्तिशाली रखता है एवं मानसिक तथा शारीरिक रोगों से बचाता है। प्राणायाम दीर्घ जीवन जीने की कुंजी है। प्राणायाम के साथ शुभ चिंतन किया जाए तो मानसिक एवं शारीरिक दोनों रोगों से बचाव एवं छुटकारा मिलता है। शरीर के जिस अंग में दर्द एवं दुर्बलता तथा रोग हो उसकी ओर अपना ध्यान रखते हुए प्राणायाम करना चाहिए। श्वास वायु नाक द्वारा अंदर भरते समय सोचना चाहिए कि प्रकृति से स्वास्थ्यवर्धक वायु रोग वाले स्थान पर पहुंच रही है, जहां मुझे दर्द हो रहा है। आधा मिनट श्वास रोक रखें व पीड़ित स्थान का चिंतन कर उस अंग में हल्की-सी हलचल करें। श्वास छोड़ते समय यह भावना करनी चाहिए कि ‘पीड़ित अंग से गंदी हवा के रूप में रोग के कीटाणु बाहर निकल रहे हैं एवं मैं रोग मुक्त हो रहा हूं। ॐ….ॐ….ॐ….’ इस प्रकार नियमित अभ्यास करने से स्वास्थ्य प्राप्ति में बड़ी सहायता मिलती है।
सावधानी: जितना समय धीरे-धीरे श्वास अंदर भरने में लगाया जाए, उससे दुगुना समय वायु को धीरे-धीरे बाहर निकालने में लगाना चाहिए। भीतर श्वास रोकने को आभ्यांतर कुंभक व बाहर रोकने को बाह्य कुंभक कहते हैं। योगी एवं दुर्बल व्यक्ति आभ्यांतर व बाह्य दोनों कुंभक करें। श्वास आधा मिनट न रोक सकें तो दो-पांच सेकंड ही श्वास रोकें। ऐसे बाह्य व आभ्यांतर कुंभक को पांच-छह बार करने से नाड़ी शक्ति व रोग मुक्ति में अद्भुत सहायता मिलती है।
स्वाध्याय अर्थात जीवन में सत् साहित्य के अध्ययन का नियम मन को शांत एवं प्रसन्न रखकर तन को निरोग रहने में सहायक होता है।
स्वास्थ्य का मूल आधार संयम है। रोगी अवस्था में केवल भोजन सुधार द्वारा भी खोया हुआ स्वास्थ्य प्राप्त होता है। बिना संयम के कीमती दवाई भी लाभ नहीं करती है। संयम से रहने वाले व्यक्ति को दवाई की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। जहां संयम है वहां स्वास्थ्य है और जहां स्वास्थ्य है वहीं आनंद एवं सफलता है।
बार-बार स्वाद के वशीभूत होकर बिना भूख के खाने को असंयम और नियम से आवश्यकतानुसार स्वास्थ्यवर्धक आहार लेने को संयम कहते हैं। स्वाद की गुलामी स्वास्थ्य का घोर शत्रु है। बार-बार कुछ-न-कुछ खाते रहने के कारण अपच, मंदाग्नि, कब्ज, पेचिश, जुकाम, खांसी, सिरदर्द, उदरशूल आदि रोग होते हैं। फिर भी यदि हम संयम का महत्व न समझें तो जीवनभर दुर्बलता, बीमारी, निराशा ही प्राप्त होगी।
सदैव स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है भोजन की आदतों में सुधार।
मैदे के स्थान पर चोकर युक्त आटा, वनस्पति घी के स्थान पर तिल का तेल, हो सके तो शुद्ध घी, (मूंगफली और मूंगफली का तेल स्वास्थ्य के लिए ज्यादा हितकारी नहीं।) सफेद शक्कर के स्थान पर मिश्री या साधारण गुड़ एवं शहद, अचार के स्थान पर ताजी चटनी, अंडे-मांसादि के स्थान पर दूध-मक्खन, दाल, सूखे मेवे आदि का प्रयोग शरीर को अनेक रोगों से बचाता है।
इसी प्रकार चाय-कॉफी, शराब, बीड़ी-सिगरेट एवं तंबाकू जैसी नशीली वस्तुओं के सेवन से बचकर भी आप अनेक रोगों से बच सकते हैं।
बाजारू मिठाइयां, सोने-चांदी के वर्क वाली मिठाइयां, पेप्सी-कोला आदि ठंडे पेय पदार्थ, आइसक्रीम एवं चॉकलेट के सेवन से बचें।
एल्युमीनियम के बर्तनों में पकाने और खाने के स्थान पर मिट्टी, चीनी, कांच, स्टील या कलई किए हुए पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें। एल्युमीनियम के बर्तनों का भोजन टी.बी., दमा आदि कई बीमारियों को आमंत्रित करता है। सावधान!
व्यायाम, सूर्य किरणों का सेवन, मालिश एवं समुचित विश्राम भी अनेक रोगों से रक्षा करता है।
उपरोक्त कुछ बातों को जीवन में अपनाने से मनुष्य सब रोगों से बचा रहता है और यदि कभी रोगग्रस्त हो भी जाए तो शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ कर लेता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

