समृद्ध एवं श्रमविरत समाज का विकृत आभूषण है- मोटापा। बैठे-ठाले जीवन का दर्पण है-मोटापा। आलस्य एवं स्वाद के प्रति समर्पण का नाम है- मोटापा। गलत आहार-विहार एवं चिन्तन के दुष्परिणामस्वरूप प्रकृतिप्रदत्त दण्ड है- मोटापा। विश्व में अरबों डालर की धनराशि मोटापे को कम करने मे खर्च हो रही है, लेकिन मोटापा विकसित देशों से होकर अब विकासशील देशों की ओर बढ़ रहा है।
मोटापा क्यों होता है? इसके कारण –
1. अत्यधिक कैलोरीयुक्त आहार का प्रयोग:
शरीर की कोशिकाओं के निर्माण, पोषण कार्य एवं स्वास्थ्य के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। लेकिन कथित आधुनिक सभ्य-समाज ने आहार को इतना विकृत एवं स्वादिष्ट बना दिया है कि व्यक्ति स्वाद के वशीभूत होकर अधिक आहार अपने अन्दर ठूँस लेता है। फलस्वरूप शरीर में कैलोरी-असंतुलन पैदा होता है। अतिरिक्त कैलोरी चर्बी के रूप में शरीर में जमा होने लगती है। समृद्ध समाज के लोग बाहर तो जमाखोरी करते ही हैं, अपने शरीर के अन्दर भी चर्बी के रूप में जमाखोरी करते हैं। आज का आदमी स्वास्थ्य को लक्ष्य मानकर नहीं खाता अपितु स्वाद के आकर्षण में बीमारी के लिए खाता है। प्रतिदिन मात्र एक गिलास दूध तथा २ ब्रेड के स्लाइस अतिरिक्त लेने से प्रति वर्ष १२ कि.ग्रा. अतिरिक्त वजन बढ़ जाता है। मोटापाग्रस्त लोगों में वजन बढ़ाना सरल किन्तु वजन घटाना कठिन होता है। एक मोटे व्यक्ति को एक कि.ग्रा. वजन कम करने के लिए प्रतिदिन कम से कम ६००० कैलोरी शक्ति खर्च करनी पड़ती है, जबकि सामान्य व्यक्ति के दैनिक कार्य के लिए मात्र २,५०० से ३,००० कैलोरी शक्ति ही चाहिए। अत्यधिक कैलोरी वाले आहार हैं- चीनी, घी, तेल, मक्खन, चाट, पकौड़े, बे्रड, टॉफी, तले-भुने एंव कन्फेक्शनरी आहार, मैदा, आलू, केल, लिम्का आदि सॉफ्ट पेय, हलवा, नमकीन, मिठाई इत्यादि।
2. व्यायाम तथा शारीरिक श्रम का अभाव।
3. अंत:स्रावी ग्रंथियों के असंतुलित स्रावजन्य मोटापा-
क) विशेषकर थायराइड तथा पैराथायरायड ग्रंथियों के स्राव के असंतुलन से शरीर में कोशिकाओं के विभाजित होने की गति बढ़ जाती है। कोशिका-विभाजन सूत्र के अनुसार दुगुनी वृद्धि के कारण मोटापा बढ़ता चला जाता है।
ख) एड्रिनल ग्रंथि के ट्यूमर या सूजन के कारण हार्मोन का स्राव अनियंत्रित हो जाता है। व्यक्ति भैंसे तक तरह मोटा एवं सुस्त हो जाता है। विशेष प्रकार के इस मोटापे में गर्दन एवं स्तन की सूजन बढ़ जाती है। इस रोग को कुशिंग सिण्ड्रोम कहते हैं।
ग) हाइपोफाइसिस (पिट्यूटरी) ग्लैण्ड के हाइपोथैलेमिक तथा एसीडोफिल ट्यूमर या अन्य ट्यूमर के कारण मोटापा होता है। मोटापा के साथ-साथ सारे शरीर एवं हड्डियों की लम्बाई दैत्याकार में बढऩे लगती है। इस रोग को जियानटिज्म कहते हैं।
घ) पैंक्रियास के लैंगर हैन्स द्वीप के अनियंत्रित हार्मोन स्राव हाइपर इन्सुलिज्म के कारण मोटापा होता है।
ङ) फ्रोलिक्स सिण्ड्रोम के कारण मोटापा होता है। इसे हाइपोथैलेमिक मोटापा भी कहते हैं।
च) महावारी बन्द होने के समय गर्भावस्था तथा परिवार नियोजन शल्यक्रिया के बाद का मोटापा गोनेड्स एवं अन्य अन्त:स्रावी ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन में असंतुलन के कारण होता है।
4. मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस के समीप क्षुधा एवं तृप्ति को केन्द्र है। इसके पास ही सच्ची प्यास को केन्द्र भी होता है। कैम्ब्रिज वि.वि. के डॉ. जेम्स टी. फिजसाइमन्स तथा नार्थवेस्टर्न वि.वि. के डॉ. एस. डब्ल्यु रैन्सन ने अपने अनेक प्रयोगों से यह सिद्ध किया कि भूखे रहने के बावजूद भी यदि क्षुधा-केन्द्र सुप्त है, सामने छत्तीसों भोजन तथा छप्पनों भोग रखे हो तथा भूख से मरने की नौबत तक आ गयी हो, फिर भी आप खाना नहीं खा सकते। किसी-किसी व्यक्ति में तृष्णा कोशिकाएँ (न्यूरान्स) उत्तेजित होकर भूख का अत्याधिक बढ़ा भी देती हैं, फलत: व्यक्ति अधिक खाकर मोटापा से पीडि़त हो जाता है।
5. वंशानुगत मोटापा– माता-पिता या उनकी सात पीढिय़ों के मोटे होने पर ८० प्रतिशत संभावना रहती है कि बच्चे मोटे होंगे। आनुवंशिक मोटापे में सारा शरीर मोटा होता है जबकि अन्य मोटापे में बीच का हिस्सा मोटा होता है।
6. मानसिक मोटापा- बाह्य खतरें एवं परिस्थितियों से पलायन के फलस्वरूप व्यक्ति ज्यादा खाने लगता है, फलत: मोटापा बढ़ता है।
7. दवाओं के दुष्प्रभावजन्य मोटापा- पारा संखिया युक्त औषधियों के प्रयोग से मोटापा होता है।
अमेरिका शोधकर्ताओं के अनुसार जुकाम एवं खाँसी के लिए जिम्मेदार एडी-३६ नामक वायरस भोजन से ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता को असंतुलित कर मोटापा बढ़ाता है।
आधुनिक खोज के अनुसार मोटापा पैदा करने में कई प्रकार के जीन जिम्मेदार है। फ्रांसीसी शोधकर्ताओं के अनुसार यूरोप के अधिकतर लोगों में टाइप एक किस्म का जीन पाया जाता है। यही जीन मध्य यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका में मोटापे को महामारी के रूप में फैलाने का प्रमुख कारण है। पेरिस के अनुसंधानकर्ताओं ने इन्सुलिन निर्माण तथा उससे सम्बन्धित विकास रसायन को नियंत्रित करने वाले डी.एन.ए. अंश का अध्ययन किया है। इन्सुलिन शरीर मे शर्करा एवं वसा को नियंत्रित करता है। जब वसा को खपाने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है तो शरीर में वह जमकर मोटापा पैदा करता है। पिता से मिलने वाला टाइप एक किस्म का जीन वसा के मेटाबॉलिज्म को धीमा कर बच्चे को मोटा बना देता है।
कोलम्बिया वि.वि. के डॉ. मार्विन सुस्सेर तथा डॉ. जेना स्टीन अपने विविध प्रयोगों से इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि गर्भावस्था के प्रारम्भिक महीनों में अत्यधिक कैलोरीयुक्त आहार देने से गर्भस्थ बच्चे के हाइपोथैलेमस पर प्रभाव पड़ता है। बच्चों को प्रारम्भ में अधिक पोषक आहार देने से वसा कोशिकाएँ बढ़ जाती हैं तथा मोटापे की विकसन-क्षमता को ताजिन्दगी बनाए रखती हैं। बाद में उसे कितना भी कम भोजन दिया जाय, वजन कम नहीं हो पाता है। गर्भवती महिला को अन्तिम तीन महीने संतुलित तथा न्यून कैलोरी का भोजन देने पर बच्चे आगे चलकर छरहरे एवं स्वस्थ होते हैं। हमने भी यह प्रयोग कर के देखा कि गर्भावस्था के समय अंकुरित अनाज, फल ताजी हरी सब्जियाँ तथा दूध के प्रयोग से बच्चे स्वस्थ एवं छरहरे होते हैं।
मोटा होकर रोगों को आमन्त्रित करें- मोटे व्यक्तियों में बिना आमंत्रण के ही निम्नलिखित रोग घर कर जाते हैं-
(१) मधुमेह (२) उच्च रक्तचाप (३) विभिन्न हृदय रोग (४) फ्लैट फूट (५) घुटने नितम्ब, कमर का अस्थि-संधिवात (६) गठिया (७) संधिवात (८) र्युमेटिक पेन (९) श्वास कष्ट (१०) एसीडोसिस (११) रक्त-विषाक्ता (१२) आयुह्नास (१३) हर्निया (१४) कोलेसिस्टाइटिस (१५) पित्ताशय की पथरी (१६) वेरिकोस वेन्स (१७) गुर्दे के विभिन्न रोग (१८) एन्जाइना (१९) हृदय की मांसपेशियों का अपविकास तथा अत्यधिक तनाव (२०) कमर दर्द (२१) अनियंत्रित रक्तसंचार (२२) उदर रोग (२३) नपुंसकता (२४) स्नायविक रोग साइटिका (२५) अपेण्डि-साइटिस (२६) लकवा (२७) दमा (२८) वन्धयत्व (२९) संत्रास (३०) जीवनी शक्ति का ह्नास (३१) शल्य चिकित्सा के बाद के अनेक रोग (३२) कैन्सर (३३) ऑस्टियोपोरोसिस (३४) मासिक धर्म की अनियमितता तथा (३५) पथरी।
चरक के मतानुसार मोटे लोगों में चर्बी तथा अन्य धातुओं में विषमता आ जाने से अनेक रोग होते हैं। एक किलो ग्राम अतिरिक्त वजन बढऩे पर हृदय को १० मील लम्बी अतिरिक्त रक्तवाहिनियों में रक्त भेजना पड़ता है। हृदय की कार्यक्षमता कम होने लगती है, हृदय को उचित पोषण नहीं मिल पाता हैं। मोटे लोगों की रक्तवाहिनियों में कॉलेस्टेरॉल, लाइपोप्रोटिन तथा अन्य तत्त्व जम कर उसे संकरी बना देते हैं। फलत: एथरोस्क्लेरोसिस, उच्चरक्तचाप तथा अन्य रक्तसंचार सम्बंधी रोग उत्पन्न होते हैं। माँसपेशियों पर चर्बी जमा होने के कारण डायफ्राम के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है, फलत: श्वास सम्बंधी रोग होते हैं। रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। मोटे व्यक्तियों के गुर्दे को अधिक कचरे की सफाई करनी पड़ती है। फलत: गुर्दे सम्बंधी रोग होते हैं। अधिक चर्बी के कारण पित्ताशय में पथरी बनने लगती है तथा कमर व घुटने पर अतिरिक्त भार पडऩे से संधिशोथ उत्पन्न होता है।
मोटापा उम्र को कम करता है- जितनी मोटी कमर उतनी छोटी उम्र- विभिन्न देशों में जीवन बीमा कम्पनियों ने अपने सर्वेक्षणों से सिद्ध किया है कि २० से ६४ वर्ष की आयु मे मरने वाले ५० प्रतिशत मोटापा से ग्रस्त होते हैं। ४० बीमा कम्पनियों के सर्वेक्षणों के अनुसार सामान्य वजन से कम वजन वाले दीघार्यु होते हैं। अंग्रेजी में एक कहावत भी है, ‘‘the longer the belt the shorter the life’’ अर्थात् पेट का घेरा बढऩे पर आदमी की आयु कम होती जाती है। अमेरिका आयुर्विज्ञानिकों ने इस कहावत को सिद्ध कर दिखाया है। उनका मानना है कि जिनकी तोंद जितनी बड़ी होती है उनमें कमर दर्द तथा हृदय रोग के दौरे भी उतने ही ज्यादा पड़ते हैं। मोटे बच्चे अस्थमा के ज्यादा शिकार होते हैं।
स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य का दुश्मन-मोटापा
स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य एक-दूसरे के पूरक हैं। मोटापे से पीडि़त रोगियों को उपर्युक्त किसी-न-किसी रोग की शिकायत बनी रहती है। मोटे व्यक्तियों मे नाक, आँख, गला, ठोड़ी पर अधिक चर्बी जमा होने से समाज में उसे विभिन्न नामों जैसे- मोटूराम, भैंसा, मोटूमल, मोटल्ला, मोटी अक्ल वाला आदि विशेषणों से पुकारा जाता है। उसे हर जगह बस, टे्रन, जहाज आदि से यात्रा करते समय उपहास की दृष्टि से देखा जाता है। इटली में मोटे आदमियों से अतिरिक्त भाड़ा वसूला जाता है। दयनीय स्थिति से बचने के लिए मोटापे को अपने पास भी नहीं फटकने देना चाहिए। सौन्दर्य, स्वास्थ्य व सम्मानहीन जीवन से अच्छा है अपने स्वाद पर आत्म-नियंत्रण रखना।
⚠️ डिस्क्लेमर:
अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी योग या स्वास्थ्य उपाय को अपनाने से पहले विशेषज्ञ या चिकित्सक की सलाह अवश्य लें। लेखक और वेबसाइट किसी भी तरह की जिम्मेदारी का दावा नहीं करते।

