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अजा एकादशी कथा व  महत्व

युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! अब मैं यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद (गुजरात-महाराष्ट्र के अनुसार श्रावण) मास के कृष्णपक्ष […]

बारिश
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मुंबई में बारिश का तांडव, पानी में डूबा अंधेरी सबवे, स्कूल बंद कहीं रेड अलर्ट तो कहीं ऑरेंज

मुंबई में लगातार तीन दिनों से भारी बारिश हो रही है। इसकी वजह से कई इलाकों में जलभराव हो गया

अध्यात्म व्रत एवं पूजा सनातन पर्व एवं त्यौहार

शुभ संकल्पों के द्वारा रक्षा करने वाला पर्वः रक्षाबंधन

हिन्दू संस्कृति ने कितनी सूक्ष्म खोज की ! रक्षा बन्धन पर बहन भाई को रक्षासूत्र (मौली) बाँधती है। आप कोई

सनातन पर्व एवं त्यौहार अध्यात्म स्वास्थ्य और योग

एकादशी व्रत के नियम

एकादशी उपवास एकादशी का उपवास सभी गृहस्थों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और लाभकारी है। पूज्य बापूजी कहते हैं कि “उपवास”

गौमूत्र के औषधीय लाभ
आयुर्वेद अध्यात्म स्वास्थ्य और योग

धरती पर अमृत है ‘गौमूत्र’

हिन्दू धर्म में गाय को बहुत पवित्र माना गया है। अनेक अवसरों पर गाय की पूजा भी हिन्दू धर्म में की जाती है। गाय का गोबर और मूत्र का उपयोग विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्डों में करते आये है, मान्यता तो यहां तक है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से गौमूत्र का सेवन करता है उसे अनेक बीमारियों से बचाया जा सकता है। गौमूत्र में अनेकों ऐसी ही खास बातें है जो प्राचीन काल से आज तक इसके महत्वों को कम नहीं होने देती है। जब वैज्ञानिकों ने गौमूत्र पर गहन अध्ययन किया तो पाया की इसमें विषनाशक गुण पाया जाता है पाचन क्रिया को सुदढ़ करने का गुण गौमूत्र में पाया जाता है। इसमें नाइट्रोजन, कॉपर, फॉस्फेट, यूरिक एसिड़, पौटेशियम, यूरिक एसिड़ क्लोराइड़ और सोडियम की भरपूर मात्रा पायी जाती है। साथ ही इसके अमोनिया, क्रि एटिनन तथा अनेक  प्राकृतिक लवण पाये जाते है, जो मानव शरीर की शुद्धि तथा पोषण करते है। आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र महौषधि है जिसमें दर्द निवारक, पेट के रोगों से जुड़े रोग, स्किन प्रॉब्लम, श्वास रोग (दमा), आंतो से जुड़ी बीमारियां, अतिसार आदि के उपचार के लिये प्रयोग किया जाता है। दंत रोग से पीडि़त रोगी गौमूत्र का कुल्ला करने से दांत के दर्द को ठीक कर सकताा है। उसमें कार्बोलिक एसिड़ समाविष्ट है। बच्चों के सुखड़ी रोग में गौमूत्र का लैक्टोज बच्चों-बूढों को प्रोटिन प्रदान करता है। हदय की पेशियों को वेकअप करता है, वृद्धावस्था में दिमाग को कमजोर नहीं होने देता। दिमागी टेशंन की वजह से नर्वस सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है, लेकिन गौमूत्र पीने से दिमाग और दिल, दांतो को ही ताकत मिलती है और उन्हें किसी भी किस्म की कोई बीमारी नहीं होती है। शरीर में पाये जाने वाले विभिन्न विषैले पदार्थो को बाहर निकालने के लिए गौमूत्र पीना बहुत ही लाभदायक है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीनों दोषों की गड़बडी की वजह से बीमारियों फैलती है। लेकिन गौमूत्र पीने से बीमारियां दूर हो जाती है। आयुर्वेद के अनुसार सुबह खाली पेट पीना चाहिए, गोमूत्र। ऐसा माना जाता है कि जब गाय खेत की तरफ देखती है, तो वह कई सारे औषधीय पत्ते खाती है, जिनके निशान उनके मूत्र में देखें जा सकते है। भारत में गौमूत्र का उपयोग चिकित्सालय प्रयोजनों के लिए बहुत लंबे समय से किया जाता रहा है। गर्भवती गाय के मूत्र को भी स्वस्थ माना जाता है, क्योंकि इसमें विशेष हार्मोन और मिनरल होने का दावा किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कैंसर सहित विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों को ठीक करने के लिए नियमित सुबह खाली पेट गौमूत्र पीने की सलाह देता है। गौमूत्र में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते है गौमूत्र में एंटीमाइक्रोबियल गुण पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है। यूरिया क्रिएटिनिन, आयरन, हाइड्रॉक्साइड, कार्बोलिक एसिड और मैगनीज की उपस्थिति बीमारियों के इलाज में फायदेमंद हैं। इसमें एंटीमाइक्रोबियल पावर्स है जोंकि कोलाई साल्मानेला टाइफर्म, प्रोटियस वल्गेरिन, एस ऑरियस, बैसिलस सेरेस और स्टोफिलोकोकस एपिडामिडिस जैसे सामान्य परेशानी पैदा करने वाले रोग जनकों दूर कर सकती है।  आधुनिक विज्ञान की क्या राय है गौमूत्र को लेकर जहाँ आयुर्वेद गौमूत्र पीने के फायदों की पुष्टि करता है, वहीं विज्ञान में इसका कोई प्रमाण नहीं है। गौमूत्र विशेष रूप से सोडियम पोटेशियम, क्रिएटिनिन फास्फोस और एपिथोलियम सेल्स जैसे मिनरल से समृद्ध है। बावजूद इसके साइंस इस बात का सपोर्ट नहीं करती है कि इसे पीने से स्वास्थ्य को किसी तरह के फायदे होते हैं। विज्ञान के अनुार इस मिनरलयुक्त उत्पाद का इस्तेमाल मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए किया जाता है, न कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के ईलाज के लिए विज्ञान में भले ही इस बात का प्रमाण न हो, लेकिन आयुर्वेद में गौमूत्र को स्वास्थ्य के लि बहुत लाभकारी माना गया है। पहाड़ी इलाके की गाय का मूत्र माना गया है ज्यादा फायदेमंद पहाड़ों पर जंगल में तथा चट्टानों पर चरने वाली गाय का गौमूत्र का आयुर्वेद की दृष्टि से ज्यादा फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि इन क्षेत्रों की गाय हरी घास के साथ इन क्षेत्रों में होने वाली औषधियों का सेवन करती है, जिससे उनका असर उनके दूध व मूत्र में आ जाता है और उनके सेवन से लाभ मिलता है। अगर कोई गाय ने बछड़े को जन्म दिया है तो ऐसी गाय का दूध या गौमूत्र बहुत फायदेमंद होता है। इसमें बहुत से पोषक तत्व होते है। वैज्ञानिक भाषा में बहुत स्वास्थ्यवर्धक हार्मोन और मिनिरल्स होते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि गाय के मूत्र और गोबर में अनेक औषधीय तत्व मौजूद होते है। यहाँ तक की गाय के दूध में गौमूत्र, घी, दही और गोबर को मिलाकर पंचगव्य तैयार किया जाता है। आयुर्वेद में पंचगव्य के औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। सुश्रुत संहित के अनुसार गाय से प्राप्त सभी चीजों में से गौमूत्र सेहत के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। आयुर्वेद में गौमूत्र के अमृत तुल्य कहा गया है। नाइजीरिया और म्यांमार में भी दवाओं में गौमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है। माना जाता है कि गर्भवती गाय का मूत्र बहुत ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक होता है, क्योंकि इसमे कुछ विशेष प्रकार के हार्मोंस पाये जाते हैं। गौमूत्र से लगभग 80 असाध्य रोगों और सेहत से संबंधित कई अन्य समस्याओं को ठीक किया जा सकता है। फर्श पर गौमूत्र का पोंछा लगाने से बैक्टीरिया नष्ट होता है। कॉस्मेटिक खासतौर पर शैम्पू और साबुन में भी गौमूत्र का इस्तेमाल किया जाने लगा है। गौमूत्र के फायदे 1. कैंसर रोगों में फायदेमंद है गौमूत्र: गौमूत्र का असर गले के कैंसर, आहार नली के कैंसर और पेट के कैंसर पर बहुत ही अच्छा माना जाता हैं। शरीर में जब करक्यूमिन नाम के तत्व की कमी होती है, तभी शरीर में कैंसर का रोग होता है। गौमूत्र में यही करक्यूमिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसे पीने से तुरन्त बाद जितने भी अपचय पदार्थ होते हैं, वह पचने लगते है और इसका परिणाम आप तुरन्त देख सकते है। भारत में हुए एक अध्ययन के अनुसार कैंसर रोगियों में गाय के मूत्र को केन्द्रित करते हुए उपचार किया जाता है। ऐसा देखा गया है कि जिन लोगों को गले, स्तन के कैंसर थे उनकी स्थिति में 2-3 महीनों बाद गाय का मूत्र उपयोग में लाने से सुधार आने शुरु हो जाते है। 2. मोटापा कम करने में सहायक है गौमूत्र: गौमूत्र में विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन डी, क्रिएटिनिन और ऐसे कई खनिज पाये जाते है, जो वजन घटाने में मदद करते है। गाय के मूत्र में पाचन के लिए महत्वपूर्ण एंजाइम भी पाये जाते है। जो वजन घटाने की प्रक्रिया में सहायता करते है। मोटाप कम करने के लिए एक गिलास पानी में चार बूंद गौमूत्र के साथ दो चम्मच शहद ओर १ चम्मच नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से मोटापे से छुटकारा मिलता है। 3. तिल्ली रोगों में फायदेमंद है गौमूत्र: गौमूत्र तिल्ली रोग बढऩे पर भी उपयोग में लाई जाने वाली औषधि है। 50 ग्राम गौमूत्र में नमक मिलाकर प्रतिदिन इसका सेवन करने से जल्दी लाभ मिलता है। इस रोग में रोग वाले स्थान पर गौमूत्र का सेक भी कर सकते है। इसके लिए एक साफ ईंट लेकर उसे थोड़ा गर्म कर लें और गौमूत्र से भिगायें हुए कपड़े में इसे लपेटकर रोग वाले स्थान पर हल्का-हल्का सेंके। इनसे प्लीहा घटने लगती है। यदि जोड़ों में दर्द है, तो भी दर्द वाली जगह पर गौमूत्र की सिकाई करने से आराम मिलता है। 4. त्वचा रोगों में फायदेमंद है गौमूत्र: ऐसा माना जाता है कि महिलाओं के लिए गाय के मूत्र का उपयोग मुहांसों और बालों से संबंधित समस्याओं से छुटकारा पाने में मदद करता हैं। साबुन, क्रीम और पाउडर जैसे सौन्दर्य उत्पाद रसायनों से बनायें जाते हैं, जो त्वचा से प्राकृतिक आकर्षण को दूर करते है। शरीर और चेहरे पर गाय मूत्र का उपयोग आपको प्राकृतिक चमक देता है।    कई बार शरीर पर सफेद दाग या कुष्ठ रोग हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में बावची/बाकुची को गौमूत्र में मिलाकर पीस लें और इससे सफेद दागों पर रात्रि के समय लगायें और सुबह इस गौमूत्र से ही धोएं। ऐसा प्रतिदिन करने से कुछ दिनों में दाग बिल्कुल ठीक हो जायेंगे। अगर शरीर में अत्याधिक खुजली होती है तो आप जीरे में गौमूत्र मिलाकर इसके लेप को शरीर पर लगाना चाहिए। इससे भी खाज-खुजली दूर होती है। गौमूत्र अन्य त्वचा की बीमारियों जैसे एक्जि़मा, सोरायसिस आदि में भी फायदेमंद हैं। 5. गले के रोगों में रामबाण है गौमूत्र: गौमूत्र में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, ये उन हानिकारक बैक्टीरिया से लड़ते है, जिसके कारण गले में परेशानी होती है। गौमूत्र को गले में खरास के इलाज के लिए कुल्ला करने के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।    कुल्ला करने के लिए गौमूत्र अर्क उपयोग करने की बजाय ताजा गौमूत्र का उपयोग करें। आप 1 चम्मच गौमूत्र लेकर हल्का सा गर्म करें, अब इसमें 1 चम्मच शहद,

"मोटापा स्वास्थ्य और सुंदरता दोनों का दुश्मन – वजन बढ़ने से जुड़ी समस्याएं
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स्वास्थ्य और सौन्दर्य का दुश्मन मोटापा

समृद्ध एवं श्रमविरत समाज का विकृत आभूषण है- मोटापा। बैठे-ठाले जीवन का दर्पण है-मोटापा। आलस्य एवं स्वाद के प्रति समर्पण का नाम है- मोटापा। गलत आहार-विहार एवं चिन्तन के दुष्परिणामस्वरूप प्रकृतिप्रदत्त दण्ड है- मोटापा। विश्व में अरबों डालर की धनराशि मोटापे को कम करने मे खर्च हो रही है, लेकिन मोटापा विकसित देशों से होकर अब विकासशील देशों की ओर बढ़ रहा है। मोटापा क्यों होता है? इसके कारण – 1. अत्यधिक कैलोरीयुक्त आहार का प्रयोग: शरीर की कोशिकाओं के निर्माण, पोषण कार्य एवं स्वास्थ्य के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। लेकिन कथित आधुनिक सभ्य-समाज ने आहार को इतना विकृत एवं स्वादिष्ट बना दिया है कि व्यक्ति स्वाद के वशीभूत होकर अधिक आहार अपने अन्दर ठूँस लेता है। फलस्वरूप शरीर में कैलोरी-असंतुलन पैदा होता है। अतिरिक्त कैलोरी चर्बी के रूप में शरीर में जमा होने लगती है। समृद्ध समाज के लोग बाहर तो जमाखोरी करते ही हैं, अपने शरीर के अन्दर भी चर्बी के रूप में जमाखोरी करते हैं। आज का आदमी स्वास्थ्य को लक्ष्य मानकर नहीं खाता अपितु स्वाद के आकर्षण में बीमारी के लिए खाता है। प्रतिदिन मात्र एक गिलास दूध तथा २ ब्रेड के स्लाइस अतिरिक्त  लेने से प्रति वर्ष १२ कि.ग्रा. अतिरिक्त वजन बढ़ जाता है। मोटापाग्रस्त लोगों में वजन बढ़ाना सरल किन्तु वजन घटाना कठिन होता है। एक मोटे व्यक्ति को एक कि.ग्रा. वजन कम करने के लिए प्रतिदिन कम से कम ६००० कैलोरी शक्ति खर्च करनी पड़ती है, जबकि सामान्य व्यक्ति के दैनिक कार्य के लिए मात्र २,५०० से ३,००० कैलोरी शक्ति ही चाहिए। अत्यधिक कैलोरी वाले आहार हैं- चीनी, घी, तेल, मक्खन, चाट, पकौड़े, बे्रड, टॉफी, तले-भुने एंव कन्फेक्शनरी आहार, मैदा, आलू, केल, लिम्का आदि सॉफ्ट पेय, हलवा, नमकीन, मिठाई इत्यादि। 2. व्यायाम तथा शारीरिक श्रम का अभाव। 3. अंत:स्रावी ग्रंथियों के असंतुलित स्रावजन्य मोटापा- क) विशेषकर थायराइड तथा पैराथायरायड ग्रंथियों के स्राव के असंतुलन से शरीर में कोशिकाओं के विभाजित होने की गति बढ़ जाती है। कोशिका-विभाजन सूत्र के अनुसार दुगुनी वृद्धि के कारण मोटापा बढ़ता चला जाता है। ख) एड्रिनल ग्रंथि के ट्यूमर या सूजन के कारण हार्मोन का स्राव अनियंत्रित हो जाता है। व्यक्ति भैंसे तक तरह मोटा एवं सुस्त हो जाता है। विशेष प्रकार के इस मोटापे में गर्दन एवं स्तन की सूजन बढ़ जाती है। इस रोग को कुशिंग सिण्ड्रोम कहते हैं। ग)  हाइपोफाइसिस (पिट्यूटरी) ग्लैण्ड के हाइपोथैलेमिक तथा एसीडोफिल ट्यूमर या अन्य ट्यूमर के कारण मोटापा होता है। मोटापा के साथ-साथ सारे शरीर एवं हड्डियों की लम्बाई दैत्याकार में बढऩे लगती है। इस रोग को जियानटिज्म कहते हैं। घ)  पैंक्रियास के लैंगर हैन्स द्वीप के अनियंत्रित हार्मोन स्राव हाइपर इन्सुलिज्म के कारण मोटापा होता है। ङ)  फ्रोलिक्स सिण्ड्रोम के कारण मोटापा होता है। इसे हाइपोथैलेमिक मोटापा भी कहते हैं। च)  महावारी बन्द होने के समय गर्भावस्था तथा परिवार नियोजन शल्यक्रिया के बाद का मोटापा गोनेड्स एवं अन्य अन्त:स्रावी ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन में असंतुलन के कारण होता है। 4. मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस के समीप क्षुधा एवं तृप्ति को केन्द्र है। इसके पास ही सच्ची प्यास को केन्द्र भी होता है। कैम्ब्रिज वि.वि. के डॉ. जेम्स टी. फिजसाइमन्स तथा नार्थवेस्टर्न वि.वि. के डॉ. एस. डब्ल्यु रैन्सन ने अपने अनेक प्रयोगों से यह सिद्ध किया कि भूखे रहने के बावजूद भी यदि क्षुधा-केन्द्र सुप्त है, सामने छत्तीसों भोजन तथा छप्पनों भोग रखे हो तथा भूख से मरने की नौबत तक आ गयी हो, फिर भी आप खाना नहीं खा सकते। किसी-किसी व्यक्ति में तृष्णा कोशिकाएँ (न्यूरान्स) उत्तेजित होकर भूख का अत्याधिक बढ़ा भी देती हैं, फलत: व्यक्ति अधिक खाकर मोटापा से पीडि़त हो जाता है। 5. वंशानुगत मोटापा– माता-पिता या उनकी सात पीढिय़ों के मोटे होने पर ८० प्रतिशत संभावना रहती है कि बच्चे मोटे होंगे। आनुवंशिक मोटापे में सारा शरीर मोटा होता है जबकि अन्य मोटापे में बीच का हिस्सा मोटा होता है। 6. मानसिक मोटापा- बाह्य खतरें एवं परिस्थितियों से पलायन के फलस्वरूप व्यक्ति ज्यादा खाने लगता है, फलत: मोटापा बढ़ता है। 7. दवाओं के दुष्प्रभावजन्य मोटापा- पारा संखिया युक्त औषधियों के प्रयोग से मोटापा होता है। अमेरिका शोधकर्ताओं के अनुसार जुकाम एवं खाँसी के लिए जिम्मेदार एडी-३६ नामक वायरस भोजन से ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता को असंतुलित कर मोटापा बढ़ाता है। आधुनिक खोज के अनुसार मोटापा पैदा करने में कई प्रकार के जीन जिम्मेदार है। फ्रांसीसी शोधकर्ताओं के अनुसार यूरोप के अधिकतर लोगों में टाइप एक किस्म का जीन पाया जाता है। यही जीन मध्य यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका में मोटापे को महामारी के रूप में फैलाने का प्रमुख कारण है। पेरिस के अनुसंधानकर्ताओं ने इन्सुलिन निर्माण तथा उससे सम्बन्धित विकास रसायन को नियंत्रित करने वाले डी.एन.ए. अंश का अध्ययन किया है। इन्सुलिन शरीर मे शर्करा एवं वसा को नियंत्रित करता है। जब वसा को खपाने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है तो शरीर में वह जमकर मोटापा पैदा करता है। पिता से मिलने वाला टाइप एक किस्म का जीन वसा के मेटाबॉलिज्म को धीमा कर बच्चे को मोटा बना देता है। कोलम्बिया वि.वि. के डॉ. मार्विन सुस्सेर तथा डॉ. जेना स्टीन अपने विविध प्रयोगों से इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि गर्भावस्था के प्रारम्भिक महीनों में अत्यधिक कैलोरीयुक्त आहार देने से गर्भस्थ बच्चे के हाइपोथैलेमस पर प्रभाव पड़ता है। बच्चों को प्रारम्भ में अधिक पोषक आहार देने से वसा कोशिकाएँ बढ़ जाती हैं तथा मोटापे की विकसन-क्षमता को ताजिन्दगी बनाए रखती हैं। बाद में उसे कितना भी कम भोजन दिया जाय, वजन कम नहीं हो पाता है। गर्भवती महिला को अन्तिम तीन महीने संतुलित तथा न्यून कैलोरी का भोजन देने पर बच्चे आगे चलकर छरहरे एवं स्वस्थ होते हैं। हमने भी यह प्रयोग कर के देखा कि गर्भावस्था के समय अंकुरित अनाज, फल ताजी हरी सब्जियाँ तथा दूध के प्रयोग से बच्चे स्वस्थ एवं छरहरे होते हैं।

ऑफिस में घंटों बैठने के नुकसान
स्वास्थ्य और योग

घण्टों ऑफिस में बैठकर काम करने से रोगों का खतरा

यौगिक जीवनशैली है रोगों का स्थाई समाधान पिछले 25 वर्षों से दुनियां में ऑफिस में बैठकर कार्य करने के चलन में तीव्र वृद्धि हुई है। अधिकांशत: ऑफिस में बैठकर कार्य करने वाले कर्मचारियों को लगातार कई-कई घंटों तक बैठकर कार्य करना होता है। काफी समय तक लगातार बैठे रहने से कई स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के खतरे (जोखिम) बढ़ जाते हैं, जैसे- मस्कुलो स्केलेटल प्रॉब्लम्स, मोटापा, मधुमेह आदि। इसके अलावा काफी लम्बे समय से लगातार बैठकर कार्य करने से हमारे मस्तिष्क में होने वाले रक्त प्रवाह में भी कमी आती है। हॉल ही में हुए एक अध्ययन में देखा गया है कि लगातार २ घंटे तक बैठे रहने पर हमारी मध्य मस्तिष्क धमनी (Middle Cerebral Artery)  में होने वाले रक्त प्रवाह में औसत रूप से ३.२ ± १.२ cm/sec की कमी देखी गई है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मध्य मस्तिष्क धमनी (Middle Cerebral Artery) हमारे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह के लिए सबसे बड़ी व मुख्य धमनी हैं। काफी लम्बे समय तक यदि मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में कमी होती है तो इसका बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव हमारे संज्ञानात्मक कार्यों (जैसे एकाग्रता, याद्दाश्त, सीखने की क्षमता, बातचीत करने क्षमता इत्यादि) पर भी होता है। इसके साथ-साथ भविष्य में मनोभ्रंश (Dementia) का खतरा भी मस्तिष्क में लगातार रक्त प्रवाह में होने वाली कमी से बढ़ता है। अत: हमें एक ऐसे समाधान की आवश्यकता है जो लगातार बैठे रहने से होने वाले दुष्प्रभावों को दूर करने में हमारी मदद कर सके। हाल ही में हुए एक अध्ययन में देखा गया है कि प्रत्येक आधे घंटे बैठकर कार्य करने के बाद यदि २ मिनट तक टे्रडमिल पर एक मध्यम गति से चला जाए तो लगातार बैठने के कारण मस्तिष्क में होने वाले रक्त प्रवाह में कमी से बचा जा सकता है। किन्तु यह प्रयोग प्रैक्टिकली संभव नहीं है क्योंकि सभी कार्यालयों में टे्रडमिल उपस्थित नहीं कराया जा सकता। इस समस्या का वास्तविक समाधान योगासनों के द्वारा किया जा सकता है। पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज द्वारा सुझावी कुछ आसानों का अभ्यास किया जाए तो लगातार बैठे रहने के कारण मस्तिष्क में होने वाले रक्त प्रवाह में कमी से बचा जा सकता है। इसके साथ ही साथ ये आसन मस्कुलो स्केलेटल सम्बंधी समस्याओं, मोटापा, व टाईप-2 डायबिटीज के रोकथाम में भी उपयोगी है। उदाहरण के लिए कुछ आसनों को नीचे दिया गया है-ताड़ासन, त्रिर्यक ताड़़ासन, कोणासन, पाद हस्तासन, त्रिकोणासन इत्यादि महत्वपूर्ण आसन हैं लगातार एक घंटा बैठकर कार्य करने के पश्चात इनमें से किसी भी एक आसन का 2 मिनट के लिए अभ्यास करें तो मस्तिष्क में रक्त प्रवाह का संचार सुचारू रूप से बना

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